Saturday, February 20, 2016

राष्ट्रवाद का मतलब है बड़े बड़े झंडे फहराना और दक्षिणपंथी विचारधारा की सोच के करीब महापुरषों की मुर्तिया बनवाना।

अगर इंसान के आयु के एवज में देखा जाय तो हिंदुस्तान बूढ़ा होने के करीब आया लेकिन आज लोगों को बुनियादी सुविधायें मसलन खाना, पानी, रोजगार, बिजली,सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा नहीं मिल पाई है।

               कांग्रेस के दस साल के शासन और उसमे हुये घोटाले से जनता त्रस्त हो चुकी थी। लोकसभा चुनाव के पहले यह उम्मीद थी कि बनने वाली आगामी सरकार लोगों को इन सभी समस्याओं से छुटकारा दिलायेगी। इस बीच नरेंद्र मोदी गुजरात में लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव जीतकर राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान बना ली थी। उनकी पहचान एक विकास पुरुष और नीतियों के आधार पर कड़क फैसला लेने वाले की बन गई थी।

                आरएसएस की राजनितिक इकाई बीजेपी ने भाजपा के तमाम बड़े और कद्दावर नेता मसलन लालकृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ और अरुण जेटली जैसे राष्ट्रीय नेताओ को दरकिनार कर नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया और उसी के बाद से देश की राजनीती विकास के बदले विचारधारा की लड़ाई में तब्दील ही गई।

                लोकसभा चुनाव के ठीक पहले यह मुद्दा उठा कि अगर नेहरू की जगह सरदार बल्लभ भाई पटेल अगर देश के प्रधानमंत्री होते तो कश्मीर समस्या नहीं होती मतलब साफ है कि चुनाव को नेहरू बनाम पटेल बनाने की कोशिश की गई उसी की फलस्वरूप बीजेपी और मोदी जी ने तय किया कि अगर बीजेपी की सरकार बनती है तो अहमदबाद में लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल की मूर्ति बनाई जायेगी जिसमे हज़ारो करोड़ो रूपये लग रहे है।

                 लेकिन चुनाव के करीब दो साल बाद भी हालात बदले नहीं है। हाल ही में जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय का ही मामला ले लीजिये। विश्वविद्यालय को आतंक का गढ़ बताया जा रहा है और एक खास विचारधारा को कुचलने की कोशिश की जा रही है। जेनयू के छात्रों को देखिये खाकी कुर्ता, पैरों में हवाई चप्पल और एक झोला। यहाँ से पास हुआ छात्र समाज को बदलने के लिये काम करता है जब कि दूसरे विश्वविद्यालयों से पास छात्र और छात्रायें (सभी नहीं) पैसा बनाने के लिये काम करते हैं।

               जेनयू अपने आप में एक सोच है, विचारधारा है किसी भी मुद्दे के सभी पहलुओं पर बात करना देशद्रोह कैसे हो सकता है। पूँजीवादी, सामन्तवादी और फाँसीवादी विचारधारा को उखाड़ने की सोच आतंकवादी सोच का पर्याय कैसे हो सकता है। जेनयू में जो कुछ हुआ वह चिंता का विषय है।

               और दूसरे भारत सरकार में शिक्षा मंत्री ने सभी विश्वविद्यालाओं को आदेश दिया कि वह अपने कैंपस में तिरंगा फहराये। वह सब तो ठीक है लेकिन क्या महज तिरंगा फहराने से काम चल जायेगा। तिरंगा फहराने और उसके सम्मान का भाव लोगो में कैसे आयेगा और अगर छात्र और छत्राओं के अंदर देशभक्ति की भावना भरनी है तो देश की सभी स्कूलों, कॉलेज और हर शिक्षण संसथान में होना चाहिये।

                 एक चैनल पर देखा कि जेनयू मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे एक वकील से सवाल किया गया तो उसने कहा "पहले वन्देमातरम का नारा लगाओ, भारत माता की जय बोलो"। उन जनाब को यह भी नहीं पता इस देश में रहने वाला हर नागरिक अपने देश को चूमता है उसे किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है।

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